राज्य में असुरक्षित हैं आदिवासी बेटियाँ, जारी है अपराध का सिलसिला
- India Plus Tv
- Nov 3, 2022
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Updated: Mar 10
गढ़वा : राज्य में आये दिन अपराध की घटनाएँ उजागर हो रहीं हैं , ज्यादातर आदिवासी बेटियाँ इसकी शिकार हो रही हैं। आदिवासी बेटियों पर हुए अत्याचार केवल अख़बार की सुर्खीयां बन कर रहे जाती हैं, पीड़ितों से मिलने न तो सरकार के नुमाइंदे जाते हैं न ही उनके लिए आक्रोश या न्याय की रैलियाँ निकली जाती हैं। कुछ महीनों की ही बात है जब पुरे देश में आदिवासी महिला राष्ट्रपति को लेकर एक माहौल तैयार किया गया था, मानो केन्द्र की सरकार को आदिवासियों की जितनी फ़िक्र है उतनी देश में किसी भी और सरकार को नहीं है। लेकिन विडम्बना है की न तो स्वयं राष्ट्रपति ने न ही केंद्र के आला मंत्रिओं ने विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य पर देश के आदिवासियों को शुभकामनाएँ दी। जिनके पास शुभकामना देने का भी समय न हो भला उनलोगों से न्याय की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं, और ये मान कर चलना की देश में आदिवासियों का समय बदलने वाला है, ये स्वयं में एक क्रूर मजाक है।

राज्य की सरकार गैर-अदिवासियों पर अत्याचार होने पर जोश से लबरेज होकर बयानबाजी भी करती है साथ ही भारी मुआवजा का भी ऐलान करती है और अपराधियों पर ठोस व सख़्त कार्यवाही की भी बात करती है। लेकिन जब बात आदिवासी बेटियों की आती है तो राज्य सरकार उदासीन रवैया अख्तियार कर लेती है। मानो आदिवासी बेटियों पर हुए अत्याचार गैर-आदिवासियों पर हुए अत्याचार से कम संगीन हो। ताज़ा मामले में गढ़वा थाना क्षेत्र के ओबरा गांव में आदिवासी परिवार की नाबालिग को उसके गांव के ही एक व्यक्ति ने बेरहमी से पीटकर अधमरा कर दिया। उससे उसका जी नहीं भरा तो ओबरा में ही सुनसान स्थान पर एनएच-343 पर गाड़ियों से कुचलने के लिए फेंक दिया। लेकिन एक बस चालक की सूझबूझ से बालिका की जान बच गई। यह घटना गुरुवार की है। पीड़िता का गढ़वा सदर अस्पताल में इलाज चल रहा है। नाबालिग की उम्र करीब 12 साल है।
जानकारी के अनुसार,पीड़िता के पिता बाहर काम करने गए हैं। माँ गढ़वा में प्रतिदिन आकर दिहाड़ी मजदूर का काम करती है। माँ के अनुसार गुरुवार सुबह करीब आठ बजे वह मजदूरी करने के लिए गढ़वा जाने लगी तो अपनी बेटी को 1140 रुपये स्वयं सहायता समूह के ऋण का किस्त जमा करने के लिए देकर गई। इसके अलावा उसने मजदूरी करके तथा समूह से ऋण लेकर 50 हजार रुपये जमा कर घर में रखे थे। पैसे निकालने के दौरान बच्ची के साथ उसकी सहेली भी वहीं मौजूद थी। माँ के घर से चले जाने के करीब आधा घंटा बाद बच्ची ने अपनी सहेली को घर से जाने को कह दिया। घर के दरवाजे में कुंडी चढ़ाकर बिना ताला बंद किए ही 1150 रुपये स्वयं सहायता समूह में जमा करने चली गई।
इस बीच सहेली ने बच्ची के घर का दरवाजा खोलकर 50 हजार रुपये निकाल लिए। तब तक वहां बच्ची पहुंच गई तो उसे देखकर सहेली भागने लगी। बच्ची ने बताया कि वह भी सहेली के पीछे पीछे उसके घर तक चली गई। वहां सहेली के पिता आसिम अंसारी ने बच्ची की डंडे से पिटाई कर दी। इतना पीटा की वह अधमरा हो गई। इसके बाद बच्ची को सुनसान सड़क पर फेंक दिया। लेकिन एक बस चालक ने बच्ची को बेहोश हालत में देखकर उसे सड़क से हटा दिया। फिर एक ग्रामीण के माध्यम से घरवालों को सूचना दी। इसके बाद बच्ची के दादा व दादी वहां पहुंचे। बच्ची को लेकर घर आए। इसके पश्चात बच्ची की माँ को पड़ोसियों की मदद से फोन कर घर बुलाया गया। इसके बाद बच्ची को इलाज के लिए गढ़वा सदर अस्पताल लाकर भर्ती कराया गया। गढ़वा सदर अस्पताल में इलाजरत बच्ची की हालत स्थिर बनी हुई है। ठीक इसके विपरीत अभी राज्य के आदिवासियों की हालत दयनीय है, जो की शर्म की बात है की आदिवासी प्रदेश के होते हुए भी हम पर अन्याय होता है और हमें न्याय की भीख माँगनी पड़ती है।
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