प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति : राष्ट्र निर्माण की ओर आदिवासियों के अग्रसर कदम या भाजपा की चाल
- India Plus Tv
- Nov 3, 2022
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ओड़िशा के मयूरभंज जिले के ऊपरबेडा गांव में जन्मी नवनिर्वाचित संथाल आदिवासी महिला, महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से देश के तमाम आदिवासी समुदाय के लोगों की उम्मीदें बंधी है कि उनके राष्ट्रपति बन जाने से अब शायद देश के आदिवासियों का भला होगा।

२० जून १९५८ (1958 )को जन्मी राष्ट्रपति जब कल शपथ ग्रहण करेंगी तो देश में एक नए अध्याय की शुरुआत होगी, अबतक जहाँ भाजपा से जुड़े लोग "वनवासी" शब्द का प्रयोग करते हुए आ रहे थे अब वे लोग भी "आदिवासी " और "ट्राइबल" शब्द का इस्तेमाल करने लगे हैं। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने अपना राजनैतिक सफर वर्ष १९९७ (1997 ) में रायरंगपुर से नगर पंचायत के चुनाव में पार्षद व नगर पंचायत की उपाध्यक्ष बन कर किया। इस से पूर्व वो श्री अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक और सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में काम कर चुकी थीं। तत्पश्चात वे उड़ीसा में दो बार (2000 व 2009 ) बीजेपी के टिकट से विधायक रह चुकी हैं और उन्हें नवीन पटनायक सरकार में मंत्री पद पर भी काम करने का मौका मिला था। उस समय बीजू जनता दल और बीजेपी के गठबंधन की सरकार थी। ओड़िशा विधान सभा ने द्रौपदी मुर्मू को वर्ष २००७ में सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी नवाजा था। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी बीजेपी से वर्ष १९९७ से ही जुडी रहीं हैं, तब वो भाजपा की एसटी मोर्चा की राज्य अध्यक्ष थीं। वे वर्ष २०१०-२०१३ तक पूर्वी मयूरभंज से भाजपा जिलाध्यक्ष रहीं हैं।
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के प्रथम बार विधायक बनने के बाद उनके गांव में सड़कें बनी साथ ही पेयजल के लिए पाइप-लाइन बिछी थी, कानू नदी पर पुल बनी व पशुओं के लिए चिकित्सालय खुला। जब वे झारखण्ड की पहली महिला के साथ ही भारतीय राज्यों की पहली आदिवासी राजयपाल (2015 -2021)बनी तो झारखंड के आदिवासियों व राज्यवासियों के लिए वे सौग़ातें ले कर आयीं। उन्होंने राज्यभवन को आम जनता के लिए अपने राज्यपाल बनने के साथ ही खोल दिया था। उनके राज्यपाल के कार्यकाल में रहते हुए वे विश्वविद्यालयों की पदेन कुलपति रहीं, इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालयों के कुलपति और प्रतिकुलपति के रिक्त पदों को भरवाया साथ ही उच्च शिक्षा पर लोक अदालतों का आयोजन करके लगभग ५००० मामलों का भी निष्पादन किया। उन्होंने विश्वविद्यालयों व कालेजों में नामांकन प्रक्रिया को केंद्रकृत करने के लिए कुलपति का पोर्टल बनवाया।
राज्यपाल रहते हुए वे विवादों से दूर ही रहीं हालाँकि उन्होंने भूमि अधिग्रहण बिल पर कहा था की "आदिवासियों की जमीन लेने जैसी कोई बात नहीं है, इसमें शेडयूल एरिया को टच नहीं किया गया है "। तब इस बिल को लेकर राजयभर में तत्कालीन सरकार के खिलाफ सड़कों पर बहार आकर आदिवासियों ने अपना विरोध दर्ज़ किया था। वर्ष २०१८(2018) में फ्लाईओवर के लिए उन्होंने राज्यभवन की जमीन देने से इंकार कर दिया था। हालाँकि सीएनटी / एसपीटी अधिनियम पर राज्य सरकार के संशोधन को ७ माह के लम्बे अंतराल के बाद उन्होंने बिल को वापस कर दिया था, उनके ऐसा करने से आदिवासी समाज में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी थी।
विगत कुछ दिन पहले तक उनके पैतृक गांव ऊपरबेड़ा में बिजली की व्यवस्था नहीं थी, जहाँ पर लगभग ३५०० की आबादी रहती है। इस गांव में बड़ाशाही और डूंगरीशाही दो टोले हैं। बड़ाशाही में तो बिजली उपलब्ध है, लेकिन डूंगरीशाही में आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी बिजली नहीं पहुंच पाई थी। वहाँ पर बिजली की व्यवस्था उनके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के ऐलान के बाद हुआ, जो की काफ़ी निराशाजनक बात है। अब देखना है की श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के पश्चात देश के आदिवासियों की स्तिथि बदलेगी या फिर जस-की-तस रहेगी। इनसे पहले राष्ट्रपति का कार्यकाल सँभालने वालों में से श्री राम नाथ कोविंद जी थे, जो की पिछड़े समुदाय से आते हैं और उन्होंने पिछड़ी समुदायों के लिए कोई खास कार्य किया नहीं, ये भी बीजेपी के बनाये हुए राष्ट्रपति थे जिनका कार्यकाल कल समाप्त हो रहा है। ऐसा भी नहीं है की उच्च पदों पर असिन वंचित तबके के लोगों ने कभी साहसिक कार्य या निर्णय नहीं लिए हैं, देश के प्रथम पिछड़े समुदाय के राष्ट्रपति दिवंगत के.आर. नारायणन उनमें से एक थे जिन्होंने तब के सरकार के मुखिया रहे दिवंगत इन्दर कुमार गुजराल के यूपी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अर्ज़ी को ठुकरा दिया था इसके अलावा मार्च २००० में जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति क्लिंटन भारत दौरे में आये थे तो उन्होंने पहले से लिखा भाषण पड़ने से इंकार करके स्वयं से भाषण दिया उस भाषण में उन्होंने अमेरिका की खुल कर आलोचना कर दी थी।
आदिवासी समुदायों में महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर अलग-अलग राय उमड़ कर बहार आ रही है, जहाँ एक तरफ एक तबके को उनके राष्ट्रपति बनने से काफी उम्मीदें जागी हैं तो दूसरी तरफ के लोगों को वो कठपुतली की भांति नज़र आ रहीं है। ये तो आने वाला वक़्त बताएगा की श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से आदिवासी समुदायों का विकाश होगा या नहीं। तबतक जो देश में आदिवासियों को लेकर जो जिज्ञासा बनी हुयी है ग़ैर-आदिवासी समुदायों के बिच उसका लुफ्त उठाइये साथ ही एक आदिवासी महिला के प्रथम नागरिक बनने की ख़ुशी भी बाँटिये।
स्रोत :
प्राइम टाइम ( एनडीटीवी इंडिया )
अमर उजाला
विकिपीडिया
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