प्रकृति का महापर्व करम पूजा आज, वर्ल्ड फेमस है महिलाओं का नृत्य, जानें करम पूजा का महत्व
- India Plus Tv
- Nov 3, 2022
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Updated: Mar 10

करम पर्व आदिवासियों के लिए अलग मायने रखता है। झारखंड सहित देशभर के आदिवासियों का मानना है कि करम प्रकृति का महापर्व है। पर्व की अनोखी कहानी प्रकृति से जुड़ी हुई है। करम पर्व पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आपसी भाईचारा का भी संदेश देता है। आदिवासियों को प्रकृति का पूजक और रक्षक कहा जाता है। इस समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला पर्व भी प्रकृति से ही जुड़ा होता है। आदिवासियों की सभ्यता, संस्कृति और परंपरा का अनोखा पर्व है करम। इस पर्व में खानपान, गीत-संगीत का भी खास महत्व होता है। भादों माह के आगमन के साथ ही लोगों के दिलो-दिमाग में करम गीत का परवान चढ़ने लगता है।
करम पूजा भाई-बहनों के अटूट रिश्ते को दर्शाती है। बहनें अपने भाई के उज्ज्वल भविष्य के लिए पूजा करती हैं और करम वृक्ष की तरह अपने भाई की दीर्घायु और परिवार में खुशहाल जीवन के लिए कामना करती है। आदिवासी समाज के लोग इस पर्व को इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि अपने जीवन की सभी शुभ काम की शुरुआत इसी दिन से करते हैं। हिंदू धर्म के तीज व्रत के बाद से आदिवासी समाज करम पर्व की तैयारियों में जुट जाता है। युवतियां गांव-मोहल्ला घूम-घूमकर चावल, गेहूं, मक्का जैसे 9 तरह के अनाज इकट्ठा करती हैं और उसे टोकरी में डालकर गांव के अखड़ा में रखती हैं। भादो मास के एकादशी के दिन शाम का समय युवक-युवतियां इकट्ठा होकर करम डाल को काटकर नाचते-गाते अखड़ा लाते हैं और इसके बाद विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। जिसमें व्रत रखी युवतियां और नव विवाहित महिलाएं, बुजुर्ग समेत गांव-मोहल्ले के सभी लोग शामिल होते हैं और पूजा संपन्न होने के बाद नाचते-गाते हैं। खुशियां मनाते हैं। दूसरे दिन लोग अपने घर में धरती मां की पूजा करते हैं और अच्छी फसल होने के साथ खुशहाल जीवन यापन और घर धन से भरा रहने की कामना करते हैं। इसी दिन युवक-युवतियां करम की डाल को लेकर नाचते गाते गांव के सभी घरों में घूमते हैं और एक दूसरे को जावा फूल के साथ पर्व की शुभकामनाएं देते हैं। इसके बाद गांव की खुशहाली और समाज को दुख-दर्द और कष्ट से मुक्ति दिलाने की कामना के साथ करम देव को नदी या तालाब में बहा दिया जाता है।
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