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झारखण्ड इंडिजेनस पीपल्स फ़ोरम का उदय व इतिहास

  • Writer: India Plus Tv
    India Plus Tv
  • Nov 3, 2022
  • 5 min read

झारखण्ड में विश्व आदिवासी दिवस मनाने की शुरुआत उस समय ही हो गयी थी जब संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यदल ( UNWGEP) ने 1993 को विश्व आदिवासी वर्ष घोषित किया था और 1994 से 2004 को विश्व आदिवासी दशक घोषित किया था। 1982 में गठित इस कार्यदल ने उस समय विश्व के आदिवासियों की गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, लचर स्वास्थ्य सुविधा, बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी इत्यादि समस्याओं को देखते हुए 1993 में अपने 11 वें अधिवेशन में आदिवासी अधिकार घोषणापत्र के प्रारूप को मान्यता दी। इसके पश्चात हर वर्ष 9 अगस्त को " विश्व आदिवासी दिवस" मनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया।




झारखण्ड ( उस समय बिहार का आदिवासी इलाका ) आदिवासी मुद्दों को लेकर देश में अपनी विशिष्ट पहचान रखता था। 20 वीं सदी के प्रारंभ से ही अपनी आदिवासी पहचान को लेकर झारखण्ड में अलग राज्य का आंदोलन भी चल रहा था। जयपाल सिंह मुंडा से लेकर अनेक आदिवासी जननेता से लेकर 90 के दशक तक आते आते डॉक्टर रामदयाल मुंडा के नेतृत्व में बुद्धिजीवियों, विचारकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज झारखंड क्षेत्र में खड़ी थी। राँची एक केंद्रबिंदु था जहां से सभी सामाजिक-राजनैतिक आंदोलनों की रूपरेखा गढ़ी जाती थी।

सन 1993 में संत जेवियर्स महाविद्यालय राँची में मनाया गया पहला आदिवासी दिवस

राँची में विश्व आदिवासी दिवस मनाने की शुरुआत सर्वप्रथम संत जेवियर्स महाविद्यालय में हुई थी । 1993 में ही जिस वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने विश्व आदिवासी वर्ष घोषित किया था उसी वर्ष 9 अगस्त को प्रथम विश्व आदिवासी दिवस संत जेवियर्स महाविद्यालय राँची के प्रांगण में आयोजित हुआ था। महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं और विभिन्न छात्र संघों ने मिलकर इस दिवस को मनाया था। इसी के साथ साथ चाईबासा की संस्था - जोहार JOHAR ( Jharkhandi's organization for human rights ) ने भी चाईबासा और कोल्हान के स्तर में इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी। 1994 में 2004 तक अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दशक घोषित होने के बाद लोगों का रुझान इस ओर बढ़ा।


राँची के स्तर पर जोहार संस्था ने इस दिवस को मनाना शुरू किया था। सन 1998 में सर्वप्रथम राँची के टाउन हॉल ( महात्मा गांधी नगर भवन, कचहरी रोड ) में बड़े स्तर पर 9 अगस्त को कार्यक्रम आयोजित किया गया था। उसके बाद हर वर्ष राँची में विश्व आदिवासी मनाने का निर्णय लिया गया। शुरुआती दौर में आदिवासी दिवस कार्यक्रम "जोहार" ने ही करवाए जिसके साथ ही कार्यक्रम में लोगों और संगठनों की संख्या बढ़ने लगी। तत्पश्चात महसूस किया गया कि विश्व आदिवासी दिवस मनाने के लिए एक नए मंच की जरूरत है अतः सर्वसम्मति से नए मंच का निर्माण किया गया।


जे.आई.पी.एफ (Jharkhand Indigenous Peoples forum ) नामक नए मंच का गठन राँची में आदिवासी दिवस कार्यक्रम को मनाने के लिए किया गया। जे.आई.पी.एफ शुद्ध रूप से एक संगठन न होकर विभिन्न संगठनों का एक साझा मंच था, जिसमें कई सारे संगठन शामिल थे। सन 2001 के आंकड़ों के अनुसार जे.आई.पी.एफ में झारखण्ड के तकरीबन 110 के लगभग संगठन सम्मिलित थे। शुरुआती दौर में 9 अगस्त के कार्यक्रम टाउन हॉल में होते थे। परंतु बाद में सरकारी उदासीनता और टाउन हॉल का अस्तित्व समाप्त होने के कारण कार्यक्रम संत जोसेफ क्लब, पुरुलिया रोड में आयोजित किया जाने लगा। जब आदिवासी दिवस कार्यक्रम की शुरूआत हुई तो मुख्य कर्ता-धर्ता के रूप में 3 संगठनों का चयन किया जाता था, जो लगातार 3 साल तक कार्यक्रम के आयोजन के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी होते थे। 2003-2005 तक कार्यक्रम की जवाबदेही - सरना मसना विकास समिति, आईकफ और आदिवासी छात्र संघ को दी गयी थी।


चूंकि यह पहला अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दशक था इसलिए जे.आई.पी.एफ ने निर्णय लिया था कि आदिवासी दिवस के मुख्य कार्यक्रम केंद्रीयकृत रूप से राजधानी राँची में आयोजित होंगे। इस दिन पूरे झारखण्ड के सभी प्रमण्डलों से लोग कार्यक्रम में सम्मिलित होने राँची आते थे। एक दशक बीतने के बाद निर्णय लिया गया कि अब समय आ गया है कार्यक्रम को विकेन्द्रीकृत करने की, इसके बाद कार्यक्रम को विकेन्द्रीकृत कर दिया गया और लोगों को अब इसे अपने जिले, प्रमंडल और प्रखंड स्तर पर करने को कहा गया। 2006 के बाद से झारखण्ड के सभी जिलों में सघन रूप से हर वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम की शुरुआत हो गयी। जमशेदपुर, चाईबासा, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लातेहार, हजारीबाग और दुमका जैसे शहरों में भी आदिवासी दिवस मनाया जाने लगा। सन 2006 के बाद से राँची में जे.आई.पी.एफ हर वर्ष विश्व आदिवासी दिवस हर्सोल्लास के साथ मनाती आ रही है ।


जे.आई .पी.एफ ने जब राँची में आदिवासी दिवस मनाना शुरू किया तो उसका एक बड़ा असर राजनीतिक दलों पर भी पड़ा। बीजेपी और आरएसएस की अनुषंगी संस्था वनवासी कल्याण केंद्र भी इसका अनुसरण करते हुए हर साल आदिवासी दिवस मनाने लगी। विभिन्न राजनैतिक पार्टियां भी छोटे टुकड़ों में कार्यक्रम करने लगी। वर्ष 2001 के आदिवासी दिवस कार्यक्रम में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री बाबू लाल मरांडी बतौर मुख्य अतिथि विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम में टाउन हॉल में उपस्थित थे। इसी के साथ साथ मुंडा सभा और अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद भी शुरुआती कुछ सालों के बाद आदिवासी दिवस कार्यक्रम मनाने लगी।


अब उन तमाम लोगों के नाम बताने जा रहा हूँ जिन लोगों के मेहनत की बदौलत जे.आई.पी.एफ का निर्माण हुआ और पूरे झारखण्ड ही नहीं बल्कि पूरे देश में भी आदिवासी दिवस को स्थापित किया जा सका, आप सभी के अतुलनीय योगदान के लिए आदिवासी समाज आप सब का आभारी रहेगा। जिसमें मुख्यतः पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा ( स्वर्गीय ), बिशप निर्मल मिंज ( स्वर्गीय ), डॉक्टर बहुरा एक्का (स्वर्गीय ), रतन तिर्की,बिनकस एक्का ( स्वर्गीय), डॉक्टर बसंती कुजूर ( स्वर्गीय ), डॉक्टर कुमारी वासंती ( स्वर्गीय ), जॉन कुजूर ( स्वर्गीय ),रत्नाकर भेंगरा, डॉक्टर गणेश मुर्मू, डॉक्टर ठाकुर प्रसाद मुर्मू, डॉक्टर हरि उरांव, डॉक्टर रोज केरकेट्टा, के जे एंथोनी, देवाशीष सोरेन, अमूल्य नीरज खलखो, अगस्टीन तिर्की, सिप्रियन एक्का, अमृत तिर्की, अल्फ्रेड एक्का, डॉक्टर शांति खलखो, मुरली मनोहर खलखो, शिव शंकर उरांव, रमेश जेराई, बीर सिंह सिंकू, धनिक गुड़िया, रेमिस कंडुलना, रोमोला होरो, परखलता समद, अजय तिर्की, बीजू टोप्पो, सुनील मिंज, जेरोम जेराल्ड कुजूर, जॉय बखला, सिलास हेमरोम, शीतल संजय तिर्की, प्रेम सुजीत कुजूर, बिशप सिरिल हंस, क्लेमेंट एक्का, ज्योत्स्ना तिर्की, ज्योत्स्ना शीला डांग, डॉक्टर नारायण उरांव, डॉक्टर नारायण भगत, महामनि कुमारी, प्रेमचंद मुर्मू, मेरी क्लाउडिया सोरेंग, बिनीत मुंडू, सरन उरांव, बिरसी उरांव, बिरसा उरांव, नागराज उरांव, किरण उरांव, अजय तिर्की ( तत्कालीन केंद्रीय सरना समिति ), तापेश्वर भगत, मानसिंह मुंडा, देवीदयाल मुंडा आदि का योगदान रहा।


अब उन छात्र संगठनों व छात्रावास के नाम बताते हैं जिनके बिना ये सब संभव नहीं होता - आदिवासी छात्रावास, दीपशिखा छात्रावास, भागीरथी छात्रावास, लोयोला छात्रावास, संत जेवियर्स महाविद्यालय छात्रावास, लोयोला छात्रावास, उर्सुलाईन छात्रावास, संत अन्ना छात्रावास, होली क्रॉस छात्रावास, निर्मला महाविद्यालय छात्रावास, पन्ना लॉज, सरना नवयुवक संघ, आदिवासी छात्र संघ, आईकफ, पलामू छात्र संघ, मुंडा छात्र संघ, खड़िया छात्र संघ, हीरा बरवे छात्र संघ, बनारी - बिशुनपुर छात्र संघ, गुमला - पालकोट छात्र संघ, मांडर छात्र संघ, जुआन संताल बैसी तथा हो छात्र संघ का राँची में आदिवासी दिवस को सार्थक बनाने में अहम योगदान रहा।

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