तीन दशक लम्बी संघर्ष लायी रंग, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की गयी भंग
- India Plus Tv
- Nov 3, 2022
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राँची: अंततः लाखों आदिवासियों की गुहार को राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने सुना और नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए ज़मीन नहीं देने की घोषणा की साथ ही अवधि विस्तार नहीं करने का निर्णय लिया है।

साल, 1964 में शुरू हुए नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का तत्कालीन बिहार सरकार ने 1999 में अवधि विस्तार किया था। ये परियोजना तब शुरू हुई जब अविभाजित बिहार सरकार ने युद्धाभ्यास फील्ड फायरिंग और आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट, 1938 की धारा 9(1) के तहत नवंबर और 25 मार्च, 1992 को अधिसूचना के दो सेट जारी किए, जिसमें अधिसूचित किया गया कि यह क्षेत्र फील्ड फायरिंग के रूप में काम करेगा और दस साल के लिए तोपखाने अभ्यास क्षेत्र के रूप में। 1999 में, इस प्रावधान को 2022 तक बढ़ाने के लिए एक और आदेश जारी किया गया था। परियोजना को रद्द करने की माँग पिछले 30 वर्षों से की जा रही थी। फायरिंग रेंज लगभग 1471 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करती है, और अनुमानित तौर पे यह 245 गांवों के दो लाख से अधिक आदिवासियों को प्रभावित कर रही थी।
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में लातेहार जिला के करीब 39 राजस्व ग्रामों द्वारा आमसभा के माध्यम से राज्यपाल को भी ज्ञापन सौंपा गया था। इसमें नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से प्रभावित जनता द्वारा बताया गया था कि लातेहार और गुमला जिला पांचवी अनुसूची के अन्तर्गत आता है। यहां पेसा एक्ट 1996 लागू है, जिसके तहत ग्राम सभा को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। फायरिंग रेंज के प्रभावित इलाके के ग्राम प्रधानों ने जनता की मांग पर ग्राम सभा का आयोजन कर नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए गांव की सीमा के अंदर की जमीन सेना के फायरिंग अभ्यास के लिए उपलब्ध नहीं कराने का निर्णय लिया था। साथ ही, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना को आगे और विस्तार नहीं कर विधिवत अधिसूचना प्रकाशित कर परियोजना को रद्द करने का अनुरोध किया था।

इस आंदोलन को सफल बनाने में उन तमाम आंदोलनकारियों व बुद्धिजीवी वर्गों के साथ ही गांव के वाशिंदों के ख़ून व पसीने की क़ीमत आज अदा हो गयी है। मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने जनहित को ध्यान में रखते हुए नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को पुनः अधिसूचित नहीं करने के प्रस्ताव पर सहमति प्रदान कर झारखण्ड के आदिवासियों की पीड़ा को महसूस किया। इसके लिए राज्य सरकार का आभार जिसने जनहित में फ़ैसला लेकर उन करोड़ों आदिवासियों की उम्मीद को बांधे रखा है कि इस देश में आदिवासियों की आवाज़ को सुनने के लिए भी सरकारें जीवित हैं।
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